कुछ कर, कुछ कर

कुछ कर, कुछ कर
कुछ कर, कुछ कर







कुछ कर, कुछ कर — यूँ न यूँ निराश हुआ कर।
क्या है जो तेरे बस में नहीं?
बस मन में ऐसे विचार न लाया कर।

रुककर मनन कर, पहचान ज़रा ख़ुद को—
इस जहाँ में क्या बच पाया है तुझसे?
हर परीक्षा तूने ही तो झेली है,
हर घाव भी खुद ही सहा है तूने।

उठ, खड़ा हो—दे आवाज़ अब ख़ुद को।
दूसरा क्या जगाएगा तुझको?
तू ही तो अरसे से सोया पड़ा है।
आवाज़ दे, खुद को पुकार—
तू खोया नहीं, बस खुद से दूर हो गया है।

ये दुनिया लोगों से भरी है;
हर किसी का सफ़र अपना है।
हमसफ़र भले अनेक हों,
पर संघर्ष सबके अलग-अलग हैं।

यूँ न वक़्त जाया किया कर—
खुद को किसी काम का पाया कर।
यूँ न निराश हुआ कर।
कुछ कर, कुछ कर— यूँ न निराश हुआ कर।

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